ख्वाहिशों ने ली अंगड़ाई,
'मन' पंख लगा उड़ने लगा,
श्वेत - श्याम सपनों में भी,
'रंग' सा भरने लगा,
इक ख्वाब था टुटा हुआ,
इक साथ था छूटा हुआ,
'कैद' रही उस चिड़िया को,
'खुला' आसमां मिलने लगा... !!अनु!!
तुम्हारा,
मुझसे मिलना तय था,
'और'
तय था..
बिछड़ जाना भी,
नियति के चक्र में बंधे,
'मैं और तुम'
बाध्य हैं,
जीवन के,
इन तयशुदा रास्तों पर,
चलने के लिए।.. !!ANU!!
Sundar evam sarthak rachna.
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कितनी बदल रही है हिन्दी !
Shukria DrZakir Ali Rajnish ji..
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