'मैं'
'नीलकंठ' न सही,
फिर भी पीती हूँ,
'तुम्हारे'
अपमान से भरे,
'विष' के प्याले...
कई दफे,
'तुम्हारे'
जहर बुझे, व्यंग बाणों
से छलनी होते 'मन' पर,
'स्वयं' ही लगाती हूँ,
'मरहम'
'मैं'
'शिव' भी नहीं,
फिर भी,
'तुम्हारे'
क्रोध के तीव्र वेग को,
समाहित करती हूँ,
खुद में,
परिवर्तित करती हूँ,
निर्मल, शीतल धारा में,
'और'
अर्पित करती हूँ,
तुम्हारे अपनों को,
'ताकि'
तुम्हारे 'अपने'
तृप्त हो सकें,
'तुम्हारी'
वाणी की 'मिठास' से..... !!अनु!!
एक बहुत ही भावुक लड़की का यह अंदाज पसंद आया। बस इसी तरह खुद को अभिव्यक्त करते रहें। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteनरेंद्र मौर्य
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने .
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है बस असे ही लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये
Thanks Narendra ji.. aap logon ke comment hausla badhate hain...
ReplyDeleteMadan Mohan ji.. aapka bahut bahut aabhar.. aap mere blog pr aaye..thanks a lot..