Monday, 26 October 2020

मुसाफ़िर

मुसाफ़िर,
तुम लौटे भी तो तब,
जब उसने उम्मीद के शीशे को
चूर - चूर कर के
अवसाद की गहरी खाई में
फेंक दिया,
अपनी मुस्कान के
दिये बुझा कर
उदासी की गहरी नींद
सो गयी,
वीराने में ख़ुद को तलाशते
वो इतनी दूर निकल आयी है
कि उसकी वापसी
सम्भव ही नहीं...!!अनुश्री!!

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