उन दिनों
जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी
तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया
कि तुम एक कुशल तैराक हो
डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं,
काश कि देख पाते तुम,
उस कुशल तैराक के बदन के भीतर का
डूबता हुआ मन,
काश कि देख पाते
वो आस भरी आंखें,
जिन्हें ज़रूरत थी सिर्फ एक बोलते स्पर्श की,
स्पर्श , जो ये कहता कि सुनो
मैं हूँ न, हमेशा ही
तुम्हारे साथ,
डूबने नहीं दूँगा तुम्हें..!!अनुश्री!!
Thursday, 19 August 2021
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
-
जिन दिनों उन्हें पढ़ना चाहिये था, ककहरा, सपने, बचपन उन्हें पढ़ाया जा रहा था, देह, बिस्तर, ग्राहक..... !!अनुश्री!!
-
'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
-
हिरोइन नहीं थी वो, और न ही किसी मॉडल एजेंसी की मॉडल फिर भी, जाने कैसा आकर्षण था उसमे जो भी देखता, बस, देखता रह जाता, उसका सांवला सा चे...
No comments:
Post a Comment