जाने क्यूँ,
थाम रखी है कलाई अपनी,
जबकि एक चुप ओढ़ कर,
बिखेर देना था वजूद,
प्रेम को नज़र लग जाने के बाद याद आया
कि बाँध देना था, एक नज़रबट्टू,
प्रेम की बाँह से,
चाँद को बादलों से घिरते देख,
तड़प उठती है चाँदनी,
ऐसी मौत नहीं माँगी थी उसने
उसे तो जीना था चाँद की बाहों में,
रेत के महल उड़ जाते हैं,
तेज हवा से झोंको से,
कितना मुश्किल होता है,
पानी पर कहानी लिखना,
कि कुछ सपने होते हैं,
सिर्फ बन्द
पलकों के लिए... !!अनुश्री!!
Thursday, 19 August 2021
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
-
आज रह - रह कर तुम्हारे ख्याल का जेहन में कौंध जाना.. 'मेरी सहेली' तुम्हारा बहुत याद आना, वो हमारी 'तिकड़ी' का मशहूर होना, इक ...
-
'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
-
जिन दिनों उन्हें पढ़ना चाहिये था, ककहरा, सपने, बचपन उन्हें पढ़ाया जा रहा था, देह, बिस्तर, ग्राहक..... !!अनुश्री!!
No comments:
Post a Comment