अब जबकि
ज़िन्दगी साथ छोड़ रही है,
तुम चाहते हो
कि बचा लो उसे,
अब जबकि मृत्यु
उसे आलिंगनबद्ध करना चाहती है,
तुम किसी बच्चे की मानिंद
भींच लेते हो उसे,
जैसे कि तुम्हें
अपनी प्रिय वस्तु के
छीने जाने का डर हो,
अब जबकि साँस थक रही है उसकी,
तुम चाहते हो कि वो सुबह-सुबह
तुम्हारे साथ भागे,
अपनी सांस के पीछे-पीछे,
कितना ख़याल रखने लगे हो उसका,
'खाना खाया'?
'दवाई ली' ?
दिन प्रतिदिन
क्षीण होती काया को
फिर से हरी-भरी देखने की
तमन्ना पाल रहे हो,
काश कि तुम जानते,
पौधे समुचित देखभाल के बाद ही
मज़बूत वृक्ष के परिवर्तित होते हैं,
खोखले पेड़ों की जड़ों में
कितनी भी मिट्टी थोप दो,
कितने भी खाद पानी डाल दो,
उन्हें तो गिरना ही है,
एक दिन
काश कि तुम जानते,
कि वो मशीन नहीं थी,
देह थी, धड़कन थी .....
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