Tuesday 16 June 2015

मछुआरे

मछुआरे,
स्वाभाविक है तुम्हारा,
'तुम्हारे' फेंके हुए जाल में,
मछली फंस जाने पर  खुश होना,
कितनी तारीफें बटोरी थी 'तुमने'
इस बहादुरी पर,
'तुम' समझ नहीं पाये
मछुआरे,
हज़ारों मछलियों की भीड़ में से,
सिर्फ उसका फंस जाना,
जरुरी नहीं समझा तुमने कि देख पाते,
उसकी आँखें,
उसकी रफ़्तार,
जो सिर्फ तुम्हारे सानिध्य की खातिर,
स्वयं ही चली आई थी
जाल की तरफ,
काश कि 'तुम' जान पाते,
'वो' प्रेम में थी 'तुमसे' !!अनुश्री!! 

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