तुम्हारी कलाई पर
मौली बाँध,
बाँध आना था,
तुम्हारी सारी मुश्किलें,
सारी
बुरी नजरों की कालिख,
जटाधारी के समक्ष
शीश नवाते वक़्त,
आशीष में
तुम्हारे लिए माँग लेना चाहिए था,
इंद्रधनुषी रंग,
नदिया की बहती जलधारा में
बहा देनी थी सारी पीड़ा,
सारे क्लेश,
उन तमाम पत्थरों के बीच,
बना देनी थी,
तुम्हारे राह के
पत्थरों की समाधि
काश कि
लौटा लाती तुम तक,
तुम्हारे बीते हुए दिन,
जिन्दगी... !!अनुश्री!!
मौली बाँध,
बाँध आना था,
तुम्हारी सारी मुश्किलें,
सारी
बुरी नजरों की कालिख,
जटाधारी के समक्ष
शीश नवाते वक़्त,
आशीष में
तुम्हारे लिए माँग लेना चाहिए था,
इंद्रधनुषी रंग,
नदिया की बहती जलधारा में
बहा देनी थी सारी पीड़ा,
सारे क्लेश,
उन तमाम पत्थरों के बीच,
बना देनी थी,
तुम्हारे राह के
पत्थरों की समाधि
काश कि
लौटा लाती तुम तक,
तुम्हारे बीते हुए दिन,
जिन्दगी... !!अनुश्री!!
अजनबी होकर भी क्यों न हो अजनबी तुम
ReplyDeleteघर कर जाते हो तुम मिश्री के जैसे बन फिर
छूट नहीं पाते चाहे जितने भी कर लो जतन
प्रेम की बगिया के फूलों की महक
सच कहीं दूर जा पाती भी तो नहीं
बसेरा डाल वो साथ साथ चलती है..!!
nice one..
ReplyDeleteजो भी उमड़ता घुमड़ता रहता तुम्हारे आस पास
ReplyDeleteकभी चिट्ठी बनकर नहीं पहुँच पाया तुम्हारे पास
कोई अड़चन भी तो नहीं थी पर थामे थे डर
ना जाने कितने अजूबे से वो भी घुमड़ते थे
बादलों की तरह बहते आते जाते बरस न पाते
हवाओं ने शायद बांध रखी थी मन की डोर
फिर भी यह था कि शब्दों के सागर को
नहीं थी बूंदों की जरुरत,वह भरा पूरा था
उसे मालूम थी हर बून्द की शरारत
कि कैसे वह वक्त बेवक्त लबालब
कर जाया करती है और तृप्त..!!
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