(1)
जाने कितनी ही
'कहानियाँ'
गढ़ रखी थी हमने,
हम दोनों को लेकर,
उन कहानियों में
मिलन नहीं था,
बिछोह भी नहीं था,
था तो बस,
हमारा स्नेह,
हमारे एहसास,
मीलों दूर होकर भी
एक दूसरे की कहानियों से
लिपटे हम,
उन बेचैनियों में भी
ढूंढ ही लेते थे 'सुकून' ,
'सच'
मिलन की कहानियों से
बेहतर होती हैं
'इंतजार'
की कहानियाँ !!अनुश्री!!
(2)
अपनी आँखों में चमकते,
सितारों से कह
दिया मैंने,
मत सजाया करो,
'उम्मीद'
कि ये दर्द के सिवा,
कुछ नहीं देती,
सपने ही सजाने हैं,
'तो'
इंतजार के सजाओ,
हर रोज,
इक नयी आस,
नया इन्तजार !!अनुश्री!!
जाने कितनी ही
'कहानियाँ'
गढ़ रखी थी हमने,
हम दोनों को लेकर,
उन कहानियों में
मिलन नहीं था,
बिछोह भी नहीं था,
था तो बस,
हमारा स्नेह,
हमारे एहसास,
मीलों दूर होकर भी
एक दूसरे की कहानियों से
लिपटे हम,
उन बेचैनियों में भी
ढूंढ ही लेते थे 'सुकून' ,
'सच'
मिलन की कहानियों से
बेहतर होती हैं
'इंतजार'
की कहानियाँ !!अनुश्री!!
(2)
अपनी आँखों में चमकते,
सितारों से कह
दिया मैंने,
मत सजाया करो,
'उम्मीद'
कि ये दर्द के सिवा,
कुछ नहीं देती,
सपने ही सजाने हैं,
'तो'
इंतजार के सजाओ,
हर रोज,
इक नयी आस,
नया इन्तजार !!अनुश्री!!
इंतज़ार ... कम से कम एक चाह तो होती है इसमें ...
ReplyDeleteबहुत खूब ... अच्छा ख्याल ...