तुम्हे भूल कर जाये कहाँ,
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा।
तू ही रात की तन्हाई में,
तू ही दिन के शोरगुल में है,
मेरा जो रहा, तू ही रहा।
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा।।
इक मोड़ पर थे तुम मिले,
फिर हौले से था दिल मिला,
अब तू बना, मेरा खुदा
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा।।
मेरे साज में तू ही बसा,
मेरे गीत को, मेरे भाव को,
अब तुझसे ही है वास्ता
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा। !!अनु!!
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा।
तू ही रात की तन्हाई में,
तू ही दिन के शोरगुल में है,
मेरा जो रहा, तू ही रहा।
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा।।
इक मोड़ पर थे तुम मिले,
फिर हौले से था दिल मिला,
अब तू बना, मेरा खुदा
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा।।
मेरे साज में तू ही बसा,
मेरे गीत को, मेरे भाव को,
अब तुझसे ही है वास्ता
कहाँ मैं बची तुमसे जुदा। !!अनु!!
प्रेम के इस समर्पण में अलग अस्तित्व रखने का मन भी कहां रहता है ...
ReplyDeleteभावभीनी ...