खामोश मोहब्बत को
लफ्जों की गरज नहीं होती,
प्रेम पत्र की दरकार नहीं होती,
एक हल्की सी नजर,
कह जाती है सैकड़ों अफ़साने,
'पर'
नजरों को पढने का हुनर भी
सबको कहाँ आता है भला ?
तुम सबसे अनोखे हो,
पढ़ लेते हो मेरी हर अनकही,
मेरी हर नजर,
और बुन लेते हो
कितनी ही कहानियां,
हमें संग पिरो कर !!अनु!!
लफ्जों की गरज नहीं होती,
प्रेम पत्र की दरकार नहीं होती,
एक हल्की सी नजर,
कह जाती है सैकड़ों अफ़साने,
'पर'
नजरों को पढने का हुनर भी
सबको कहाँ आता है भला ?
तुम सबसे अनोखे हो,
पढ़ लेते हो मेरी हर अनकही,
मेरी हर नजर,
और बुन लेते हो
कितनी ही कहानियां,
हमें संग पिरो कर !!अनु!!
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteप्रेम भरी नज़र हो तप सब कुछ पढ़ना आसान होता है ....
ReplyDeleteबहुत लाजवाब भाव ...