कल सरस्वती पूजा है, लेकिन यहाँ स्कूल से ले कर गलियों तक कहीं भी इसकी धूम नहीं है, और मेरी रांची में, वहां तो जगह जगह सरस्वती माता का पंडाल लगा होगा, ठीक मेरे घर में सामने भी, कभी भक्ति तो कभी आदवासी गाने ज्यादा बजते हैं। जब स्कूल में थे, तो मुझे याद है, 8 क्लास से ही हम लोग पूजा वाले दिन साड़ी पहनने लगे थे, बकायदा साड़ी पहनकर, उस दिन स्कूल जाते थे, और पूजा के बाद होती थी खूब मस्ती, फिर किसी दोस्त के घर जाने का प्लान, मतलब की पूरा दिन बस घूमना और खाना मैं, अंजना और पिंकी ..उन दोनों का घर एक रूट में पड़ता था, इसलिए करीब हर साल इन्ही दोनों के घर जाया करते थे हम .. खैर, अब कहाँ वो मस्ती भरे दिन, वो सखियों का साथ, बस कुछ यादें हैं, जिन्हें संजो कर रखा है .. हमेशा के लिए ..
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साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
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'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
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रिमझिम बारिश की बूँदें, ज्यों पड़ती हैं, इस तपती जमीं पर, उठती है खुशबू, 'सौंधी सी' फ़ैल जाती है, 'फिज़ाओ में' हाथ पकड़ कर, खीच...
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उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
बहुत बढिया
ReplyDeleteपुरानी यादें वाकई लोगों को जीवंत कर देती हैं..
सच कहा है ... अब बार वेलेंटाइन का बुखार रहता है बसंत के आस पास ...
ReplyDeleteपर दिल को सकूं अपनी यादें ही देती हैं ...