'लीची' सब लोग तो जानते ही होंगे.. लेकिन एक ख़ास बात, पता नहीं होगी किसी को... 'हाँ' मेरे रांची के दोस्त शायद जानते हों... 'लीची' का पत्ता और 'पुटुष' का बीज, दोनों मिला कर खाने में मुह एकदम पान खाने जैसा लाल हो जाता है.. :).. माँ को बहुत चिढाते थे.. 'देख अम्मा... हम पान खाय है'.. और जब वो गुस्सा हो जाती, तब बताते थे.. कि ' ये तो लीची का पत्ता है'..:).. मामा का घर मुजफ्फरपुर में है.. करीब करीब हर साल भेज देते थे.. अब तो कानपूर में खरीद कर खाना होता है.. लेकिन तब कि बात अलग थी..सब भाई बहन.. एक एक झोपा ले कर बैठ जाते थे..
Tuesday, 8 May 2012
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साथ
उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...
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आज रह - रह कर तुम्हारे ख्याल का जेहन में कौंध जाना.. 'मेरी सहेली' तुम्हारा बहुत याद आना, वो हमारी 'तिकड़ी' का मशहूर होना, इक ...
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'देह' स्त्री की, जैसे हो, कोई खिलौना, पता नहीं, 'कब' 'किसका' मन मचल पड़े, 'माँ' 'माँ' यही खिलौन...
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जिन दिनों उन्हें पढ़ना चाहिये था, ककहरा, सपने, बचपन उन्हें पढ़ाया जा रहा था, देह, बिस्तर, ग्राहक..... !!अनुश्री!!
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