प्रेम,
कभी -कभी
भ्रम में होना भी,
कितना सुकून देता हैं न,
और वो भी
तुम्हारे होने के भ्रम से
ज्यादा खूबसूरत
क्या होगा भला,
इधर,
वो हार जाना चाहती है, दुःख,
उधर,
दर्द जीत लेना चाहता है उसे,
तुमने कहा,
तुम लौट जाना चाहते हो,
अपने ख़्वाहिशों के गाँव,
बुनना चाहते हो
एक रंगीन सपना,
तुम्हें पता है,
उसे सपने नहीं आते अब,
उसने सपनों की जगह
जड़ लिया है तुम्हें,
अपने भ्रम जाल से
बाहर निकलना
सीखा ही नहीं उसने,
सुनो,
वो भी गुनगुनाना चाहती है,
नदी गीत,
लिखना चाहती है,
प्रेम राग.... !!अनुश्री!!
Friday, 23 December 2016
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जिन दिनों उन्हें पढ़ना चाहिये था, ककहरा, सपने, बचपन उन्हें पढ़ाया जा रहा था, देह, बिस्तर, ग्राहक..... !!अनुश्री!!