जाने कितने ही नक्षत्रों,
आकाशगंगाओं को लाँघ कर,
लौट आता है 'मन'
'तुम' तक, बार- बार,
ये जानते हुए कि
तुम्हारी आस,
इक प्यास है,
चिरस्थायी प्यास,
आह! जीवन है,
तुम्हारे और मेरे प्रेम की
'मृगतृष्णा',
हाँ, जादूगर हो
'स्वामी' 'तुम' !!अनुश्री!!
आकाशगंगाओं को लाँघ कर,
लौट आता है 'मन'
'तुम' तक, बार- बार,
ये जानते हुए कि
तुम्हारी आस,
इक प्यास है,
चिरस्थायी प्यास,
आह! जीवन है,
तुम्हारे और मेरे प्रेम की
'मृगतृष्णा',
हाँ, जादूगर हो
'स्वामी' 'तुम' !!अनुश्री!!