Wednesday 19 March 2014

नेता

बीवी बोली नेता से, ए जी जरा सुनते हो, हमरी भी बात पे गौर जरा कीजिये,
बहुत ही दिन हुआ, कहीं हम घूमे नहीं, अबकि हमको गोआ घुमा दीजिये,
नेता बोले, बीवी जी एक बात कहते हैं, कुछ दिन अपना मुँह बंद कीजिये,
गोआ क्या चीज़ है, लंदन घुमायेंगे हम, एक बार हमको जीत जाने दीजिये !!अनु !!


मौसम है चुनाव का, पार्टियों के नेता भी, अपनी अपनी चालों की गोटियाँ हैं फेंक रहे,
कोई हाथ जोड़े खड़ा, कोई पैरों पे है पड़ा, तरक्की और विकास के वादे भी अनेक रहे,
कहीं जातिवाद को रगड़ा, कहीं धर्म का है झगड़ा, वोटों को बटोरने के तरीके सबके एक रहे,
सियासी ये भेड़िये, दंगों की आंच पर, अपनी अपनी राजनितिक रोटियाँ हैं सेंक रहे। !!अनु!!

Saturday 15 March 2014

होली है !!

बुरा न मानो होली है !!

नेह से श्रृंगार कर आया जो फागुन तो, खुशियों की वेणी से द्वार सजने लगे,
पुलकित हुआ मन झूम उठा अंग अंग, अधम, कपट और द्वेष तजने लगे,
उठी जो मनोहर प्रेम की तरंग तो, मन की वीणा के सितार बजने लगे,
चढ़ा जो असर तो शहर के बूढ़े भी, राम नाम छोड़ कर प्रेम भजने लगे !!अनुश्री!!


आ गुलाल कोई मले, या मुझे  रँग लगाय,
जो पी के रँग मैं रँगू , मन फागुन हो जाय !!अनुश्री!!

Wednesday 12 March 2014

'चाँद'

'चाँद'
तुम चाहो या न चाहो,
गाहे - बगाहे तुम्हे
पा  लेने की आस,
उग ही जाती है
'मन में'
पूरे हौसले और
जीत जाने के
जज्बे के साथ,
भर्ती हूँ उड़ान,
'तुम तक'
पहुँचती  तो हूँ,
लेकिन उसके पहले ही,
ये अमावस
तुम्हे अपने अंक में समेट
छुपा लेता है,
और मेरे हिस्से
लिख देता है
'इंतजार'
'चाँद'
तुम्हें पा लेने की
ख्वाइश,
नहीं तोड़ती दम,
उम्मीदों के बेल,
मुरझा तो जाते हैं,
पर सूखते नहीं,
इन्हे फिर से
दूंगी, थोडा हौसला,
थोडा जज्बा,
और
तैयार हो जाउंगी,
भरने को,
'इक नयी उड़ान। !!अनु!! 

Tuesday 11 March 2014

'प्रेम'

'प्रेम'
तुम्हारे यूँ विदा कह देने
भर से ही,
विदा नही हो जाती 'साँसे'
विदा नही होती 'यादें'
विदा नही होते हैं वो 'लम्हे'
जो हमने साथ गुज़ारे
'और' न ही विदा होते हैं
वो 'एहसास'
जो अब मेरा वजूद बन चुके हैं,
'तुम'
मेरी पूरी कायनात,
'मेरा' रचा बसा संसार,
तुम्हे आभास भी हैं,
तुम्हारे विदा कह देने से,
थम जाता है सफ़र,
रुक जाती है धड़कन,
'प्रेम'
तुम्हे 'तुमसे'
खुद के लिए माँग लूँ?
बुरा तो नहीं मानोगे न ..
तुम्हारी ही 'मैं' ......... 

Monday 3 March 2014

दोहे

ये जग अम्बर और धरा, सब जाती मैं जीत,
गर मेरे मन आ बसै, वो मेरे मनमीत !!अनु!!

लाख छुपाऊँ छुपै नहीं, ये हिरदय की पीर, 
पलकों की जद तोड़ के, बह जाता है नीर !!अनु!! 

रंग-अबीर-गुलाल सब लाख लगावै कोय.
जब मोरे सजना रँगैं तबहीं होरी होय ।

नहीं नफा-नुकसान कुछ,ये ऐसा व्यापार, उसकी होती जीत है, जो दिल जाता हार !!


लोक लाज सब छोड़ी कै, करती हूँ इकरार,
सोना तो बेमोल है, लाख टके का प्यार !!अनु!!



साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...