Tuesday 21 August 2012

मेरी कविता

तुम्हारा,
यूँ चले जाना,
'जैसे' विराम लग गया हो,
मेरी कविता पर,
क्या तुम्हे
तनिक भी आभास नहीं,
कि तुम्हारे ही
इर्द - ग़िर्द घूमती है,
मेरी कविता',
तुम्हारी हँसी में
खिलखिला उठती है,
रो पड़ती है,
तुम्हारे आँसूओं संग,
इनमें 'तारों की' चमक नहीं,
चाँद की शीतलता,भी नहीं,
न तपन,सूरज की,
लहरें नहीं,, सागर नहीं,
दरिया नहीं,, भूधर नहीं,
तुमसे, सिर्फ़ तुमसे,
जीवन्त हो उठती है,
मेरी कविता ....
!!अनुश्री!!

Saturday 18 August 2012

कभी कभी

कभी कभी खामोशियाँ भी 
अफ़साने कह जाती हैं,
'तो कभी', 
लफ्ज़ ही नहीं मिलते, 
खुद को जताने के लिए।




कुछ निरर्थक से सवाल करती हूँ जिंदगी से,
क्या 'जीवन सार्थक हो जाता है,
प्रिय को पा लेने के बाद, 
या रह जाते हैं कुछ अनुत्तरित से प्रश्न 'तब भी'? 
जवाब ढूंढ़ती जिंदगी,
'मौन है' आज तक।..



तुम ही रहोगे,
'हमेशा'
मेरी पहली प्राथमिकता,
क्या तुम्हे नहीं पता? 
मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है,
न 'दिल' का, न 'प्रेम' का.. !!अनु!!



'प्रेम' 
नहीं पहुंचना मुझे 'तुम तक' 
'कुछ दिन', 'कुछ पल', 
की शर्त पर भी नहीं,
चाहे जिद समझो इसे 
या मेरा स्वार्थ, 
तुझ में खो कर, 
तुझे खो दूँ,
उससे तो मेरा इंतज़ार भला.. !!अनु!! 

'रात' 
ढूंढ़ती रही तुम्हे, 
कुछ ख्वाब, 
कुछ अभिलाषाएं लिए,
'प्रेम'
पढता रहा तुम्हे, 
ख़ामोशी को साथ लिए..!!अनु!


'मुझे' 
नहीं चाहिए, 
तुम्हारा समर्पण, 
'प्रेम में' 
तुम्हारी आहुति, 
'तुम' 
बने रहना, 
'मेरे आराध्य'
और 'मैं' 
तुम्हारी 'मीरा'... !!अनु!!


तुम्हारा प्रेम, 
नहीं करने देता, 
मुझे कोई भी तर्क-वितर्क, 
और ना ही पड़ना है मुझे, 
सच और झूठ के इस चक्रव्यूह में, 
मेरा तो बस एक ही सच है,
'सच' तुम्हारे प्रेम का.. !!अनु!!

Sunday 12 August 2012


ख्वाहिशों ने ली अंगड़ाई, 
'मन' पंख लगा उड़ने लगा,
 श्वेत - श्याम सपनों में भी,
 'रंग' सा भरने लगा,
 इक ख्वाब था टुटा हुआ,
 इक साथ था छूटा हुआ, 
'कैद' रही उस चिड़िया को,
'खुला' आसमां मिलने लगा... !!अनु!! 


तुम्हारा, 
मुझसे मिलना तय था, 
'और' 
तय था..
बिछड़ जाना भी, 
नियति के चक्र में बंधे, 
'मैं और तुम' 
बाध्य हैं,
जीवन के, 
इन तयशुदा रास्तों पर,
चलने के लिए।.. !!ANU!!

साथ

उन दिनों जब सबसे ज्यादा जरूरत थी मुझे तुम्हारी तुमने ये कहते हुए हाथ छोड़ दिया कि तुम एक कुशल तैराक हो डूबना तुम्हारी फितरत में नहीं, का...