Tuesday 21 August 2012

मेरी कविता

तुम्हारा,
यूँ चले जाना,
'जैसे' विराम लग गया हो,
मेरी कविता पर,
क्या तुम्हे
तनिक भी आभास नहीं,
कि तुम्हारे ही
इर्द - ग़िर्द घूमती है,
मेरी कविता',
तुम्हारी हँसी में
खिलखिला उठती है,
रो पड़ती है,
तुम्हारे आँसूओं संग,
इनमें 'तारों की' चमक नहीं,
चाँद की शीतलता,भी नहीं,
न तपन,सूरज की,
लहरें नहीं,, सागर नहीं,
दरिया नहीं,, भूधर नहीं,
तुमसे, सिर्फ़ तुमसे,
जीवन्त हो उठती है,
मेरी कविता ....
!!अनुश्री!!

2 comments:

  1. स्त्री भावों को सहज भावों में व्यक्त किया है आपने. एक बात कहना चाहूँगा कि अगर 'मेरी कविता' की बार-बार पुनरावृत्ति ना हो तो मुझे लगता है और भी ख़ूबसूरत और प्रवाहमयी कविता बन सकती है. माफ़ कीजियेगा अनुजी, ये सिर्फ मेरी राय है, मुझे ऐसा प्रतीत हुआ..
    सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनाएँ, आभार !

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    1. aap mere blog pr aaye.. yahi mere liye bahut abdi baat hai.. aap jaise log bhi meri kavitayein padhte hai.. maine sapne me bhi nahi socha tha.. aapki baaton pr gaur jarur karungi.. aur mujhe yakin hai.. aap aage bhi meri kamiyan mujhe batate rahenge..

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